नई दिल्ली, 3 जून (आईएएनएस)| केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विभिन्न शिक्षा पाठ्यक्रमों को मिश्रित तरीके विकसित करने का सुझाव दिया। इसका उद्देश्य राज्यों का महत्व बरकरार रहना है। मंत्रालय का कहना है कि इसके जरिए जीवंत शिक्षा परि²श्य और 21वीं सदी का भारत बनाने के लिए लगातार मिलकर काम किया जा सकता है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा आयोजित स्कूली शिक्षा मंत्रियों के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान पाठ्यक्रमों के मिश्रित तरीके विकसित करने का यह सुझाव दिया गया। यहां अपने समापन भाषण में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 32 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सभी मंत्रियों और हितधारकों को सीखने और शैक्षिक प्रथाओं में उत्कृष्टता लाने के तरीकों पर अपनी सीख और अनुभवों को साझा करने के लिए धन्यवाद दिया।
उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम शिक्षक प्रशिक्षण, और ई-लनिर्ंग फ्रेमवर्क एक प्राथमिकता हैं। उन्होंने एनसीएफ के विकास और शिक्षक क्षमताओं के निर्माण में सभी राज्यों से अधिक सक्रिय समर्थन, सहयोग और भागीदारी का आग्रह किया।
मंत्री ने कहा कि एनईपी स्किलिंग पर भी जोर देती है। उन्होंने राज्यों से डाइट को मजबूत करने और पर्याप्त संख्या में कौशल केंद्रों के साथ आने के लिए स्कूल के समय के बाद स्कूल के बुनियादी ढांचे का लाभ उठाने का आह्वान किया।
मंत्री ने कहा कि हर राज्य की अपनी प्रोपोजिशन होती है। उन्होंने राज्यों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम को मिश्रित करने के तरीके विकसित करने का भी सुझाव दिया।
उन्होंने सभी से एक अधिक जीवंत शिक्षा परि²श्य और 21वीं सदी का भारत बनाने के लिए लगातार मिलकर काम करने का आग्रह किया।
सम्मेलन के दूसरे दिन, शिक्षा मंत्रियों के साथ संवाद सत्र आयोजित किया गया जिसमें एनईपी 2020 कार्यान्वयन का रोल आउट और प्रगति राज्य पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एससीएफ) की तैयारी स्कूल फिर से खुलने के बाद सीखने की बहाली के लिए रणनीतियां, शामिल थी। इसके अलावा मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता और स्कूलों में कौशल छात्र पंजीकरण को बढ़ावा देना शामिल थे।
इस मौके पर एआईसीटीई के अध्यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी मंच और राष्ट्रीय डिजिटल शिक्षा वास्तुकला (एनडीईएआर) पर एक प्रस्तुति भी दी गई।