मराठा नेता मनोज जारांगे-पाटिल ने कड़ा रुख अपनाते हुए सरकार पर उनके समुदाय के लिए आरक्षण के मुद्दे पर गंभीर नहीं होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि इसे देखते हुये बुधवार को यहां ‘कठिन’ भूख हड़ताल शुरू कर दी गई है।
अपने पैतृक गांव अंतरावली-सरती में अपने समर्थकों के साथ जारांगे-पाटिल ने तब तक भोजन, पानी और दवा से दूर रहने का फैसला किया है, जब तक सरकार मराठा आरक्षण की मांग नहीं मान लेती।
उन्होंने घोषणा की, “राज्य सरकार 30 दिन चाहती थी, हमने उन्हें 40 दिन दिए… आज, अल्टीमेटम के बाद 41वां दिन है, लेकिन कुछ भी नहीं किया गया है। सरकार कोटा के लिए हमारी याचिका के बारे में गंभीर नहीं है।”
उन्होंने मीडियाकर्मियों से कहा कि मराठा आरक्षण के दायरे में आ रहे हैं, फिर भी कई आंदोलनों, जुलूसों और वादों के बावजूद उन्हें आरक्षण से वंचित किया गया है।
जारांगे-पाटिल ने उम्मीद जताई कि सरकार एक-दो दिन में आरक्षण की घोषणा कर देगी, खासकर तब जब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार रात मुंबई में छत्रपति शिवाजी महाराज की तस्वीर के सामने झुककर मराठा आरक्षण देने और समुदाय को न्याय दिलाने के लिए अंतिम सांस तक लड़ने की कसम खाई।
मराठा आरक्षण की मांग को लेकर समुदाय ने 29 अगस्त से सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जारंगे-पाटिल ने अपनी पहली अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल उसी दिन शुरू की थी। हालांकि 17 दिन बाद सरकार से मराठा आरक्षण पर सकारात्मक आश्वासन मिलने पर उन्होंने भूख हड़ताल समाप्त कर दी थी। इसके बाद वे कई प्रमुख जिलों के दौरे पर गए और समुदाय की कई विशाल रैलियों को संबोधित किया।
इससे पहले, उन्होंने चेतावनी दी थी कि 24 अक्टूबर तक, “या तो उनकी शवयात्रा निकाली जाएगी या मराठों की विजय यात्रा”। उन्होंने कहा था कि समुदाय अब पूरी तरह एकजुट है और इस मुद्दे पर एक इंच भी पीछे नहीं हटेगा।
राज्य में आरक्षण समर्थक कार्यकर्ताओं द्वारा कई आत्महत्याएं हुई हैं। कुछ जिलों के 50 से ज्यादा गांवों ने विरोध स्वरूप सभी दलों के राजनेताओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है।
जारांगे-पाटिल के आंदोलन को राज्य में सत्तारूढ़ शिवसेना-भारतीय जनता पार्टी-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार), विपक्षी कांग्रेस-शिवसेना (यूबीटी)-एनसीपी (शरद पवार) और अन्य मराठा सहित लगभग सभी राजनीतिक दलों का समर्थन मिल रहा है।